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  • पुरंदर की संधि - विकिपीडिया
    मुगल साम्राज्य के सेनापति राजपूत शासक जय सिंह प्रथम और मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज के बीच, 11 जून, 1665 को पुरन्दर की संधि (मराठी : पुरंदर चा तह) ) पर हस्ताक्षर किए गए थे। जय सिंह द्वारा पुरंदर किले की घेराबंदी करने के बाद शिवाजी को समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा। जब शिवाजी ने महसूस किया कि मुगल साम्राज्य के साथ युद्ध केवल साम्र
  • पुरंदर की संधि की प्रमुख शर्तें क्या थी - India Old Days
    पुरंदर की संधि पर मराठों की ओर से सूखराम बापू ने तथा अंग्रेजों की तरफ से कर्नल अप्टन ने हस्ताक्षर किये। किन्तु बंबई सरकार तथा वॉरेन हेस्टिंग्ज इस संधि को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। इसी बीच मराठों ने विद्रोही सदाशिव को पकङ लिया तथा उसकी हत्या कर दी। अब मराठे अंग्रेजों से निपटने के लिए तैयार थे।
  • पुरंदर की लड़ाई - battle of purandar was fought between in Hindi
    पुरंदर की लड़ाई (battle of purandar upsc in hindi) के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों को दर्शाती है।
  • पुरन्दर की सन्धि - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर
    पुरन्दर की संधि मार्च 1776 ई में मराठों तथा ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुई थी। 'बम्बई सरकार' और अपने को पेशवा मानने वाले राघोवा के बीच 1775 ई की सूरत की संधि के फलस्वरूप कम्पनी और मराठों के बीच युद्ध छिड़ गया था। [1] यह युद्ध 1782 ई तक चलता रहा और सालबाई की सन्धि के द्वारा ही समाप्त हुआ। औपनिवेशिक (उपनिवेश) काल (1760-1947 ई )
  • पुरन्दर की संधि
    पुरन्दर की संधि- 11 जून, 1665 ई को शिवाजी और जयसिंह के बीच संधि हुई जिसे पुरन्दर की संधि कहते हैं
  • पुरंदर की संधि (Treaty of Purandar, 1665)
    1665 की Treaty of Purandar शिवाजी महाराज और मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के बीच राजनीतिक कूटनीति का प्रतीक है – जानें पूरी कहानी।
  • पुरंदर की लड़ाई (1665) – Study Material
    जब शिवाजी ने महसूस किया कि मुगल साम्राज्य के साथ युद्ध केवल साम्राज्य को नुकसान पहुंचाएगा और उनके लोगों को भारी नुकसान होगा, तो उन्होंने मुगलों के अधीन अपने लोगों को छोड़ने के बजाय एक संधि करने का फैसला किया। संधि के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
  • पुरंदरचा तह (Treaty Of Purandar In Marathi Hindi)
    On 12 June 1665, the Treaty of Purandar was signed between Shivaji Maharaj and the Mughal general Mirzaraja Jai Singh This Persian text is twenty-two feet long and has 99 lines Devanagari transliteration and Hindi and Marathi translation of this treaty is given in this Purandarcha Tah book




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